Monday, 30 May 2016

समय यात्रा ताजमहल को बनते देखा )

यादे हमेशा दुःख का कारण होती है और अतीत जो बुरा हो जीने नही देता । मै रवि चौधरी आज भी उस समय यात्रा हो नही भूल पाया जो खून से भरा हुआ था । उन दिनों मै आगरा में था और एक किले की जांच कर रहा था । तभी मैने कुछ अजीब से निशान को देखा । वो किसी तरह की भाषा थी पर मुझे वो समझ नही आ रहा था । कई महीनो की शोध के बाद आखिर कार मुझे उन शब्दों का अर्थ मालुम चल गया । उन शब्दों को पढ़के पता चला की उस किले में एक कुआँ है और उस कुँए में एक दरवाजा है । पर उसके आगे के शब्द मिट चुके थे इसलिए मै उन्हें पढ़ नही पा रहा था ।
अगले दिन मै उस कुँए की खोज में लग गया और आखिर कार मैने उस गुप्त कुँए को खोज ही लिया ।
कुँआ एक अँधेरे तेखाने के निचे था जहाँ सिर्फ कीड़ो के अलावा कुछ नही था । मेरे हाथ में एक torch था और एक रस्सी । कुँए में निचे जाने का कोई और उपाए नही था तो मैने सामने एक पथर से रस्सी को बान्ध दिया और मुँह में torch डाल के निचे कुँए में उतरने लगा । कुँए में साँप और बिच्छी भी थे पर मुझे उनका उतना डर नही था मै तो कुँए की ख़ामोशी से डरा हुआ था । आखिर कार में नीचे पहुँच गया । सामने एक लकड़ी का पुराना दरवाजा था मैने उसे खोलने की कोशिस की पर वो नही खुला । आखिर कार मैने 5 कदम पीछे लिए और तेजी से दरवाजे की ओर दौड़ पड़ा । एक जोर दार आवाज हुई और मै उसदरवाजे से जा टकराया । दरवाजा जैसे की टूटा वैसे ही किसी अनजान तागत ने मुझे अंदर खीच लिया ।
जब मेरी आँखे खुली तो मै कहि और ही था। लगता था जैसे उस कुँए के दरवाजे ने मुझे कहि लाकर फेक दिया हो । मै किसी रेत के टीले के निचे था ।मैने आँखे साफ़ की और ऊपर की ओर चढ़ने लगा और जैसे ही मै ऊपर पहुँचा मेरी आँखे फ़टी की फ़टी रह गई । लाखो की तादाद में लोगो को कहि ले जाया जा रहा था । मर्द औरते बच्चे और बूढ़े सभी इस भीड़ में थे । सभी की हालत बहुत ही खराब थी और उन्हें बुरी तरह पिट पिट कर ले जाया जा रहा था । ये सब देख कर मेरी हालत खराब होने लगी थी और में बेहोश हो कर गिर पड़ा ।
जब मेरी आँख खुली तो मैने खुद को एक पुरानी सी झोपडी में पाया ।मेरे बगल में सुराही थी तो मैने थोडा पानी पि लिया और झोपडी से बाहर निकला ।
मै रवि चौधरी यह कह सकता था की आज मेरा दिन अच्छा नही था पर मैने ऐसा कुछ देखा जिसने मेरे होश ही उड़ा दिये । मेरे सामने ताजमहल था और वो अभी बन रहा था । ताजमहल के चार खम्भे अभी बने नही थे और बिच के गुम्बद पर काम चल रहा था । मै उन मजदूरो को देख सकता था जो इतनी उचाई पर काम कर रहे थे। मेरी खुशि का कोई ठिकाना नही था की तभी मेरे सिर पर किसी ने पीछे से मारा और मै गिर गया जब मेरी आँखे खुली तो मै देख कर हैरान हो गया । किसी ने मेरे पाव में जंजीर बाँध दी थी । और जब मैने नजरें घुमाई तो चारो तरफ शमसानो जैसा माहौल था । लाखो की तादाद में लोगो से जबरदस्ती पत्थर तुड़वाए जा रहे थे ।बच्चों से पानी मगाया जा रहा था और औरते व बूढ़े पत्थरो को ढोने का काम कर रहे थे । मुझे ये समझने में जादा देर नही लगी की मै अब एक गुलाम बना दिया गया हु ।
एक हफ्ता हो चूका था और मुझमे और एक कुते में जादा फर्क नही था यहाँ । काम करते करते मेरी बुरी हालत हो चुकी थी । खाने को यहां कभी कभी ही मिलता था वो भी ऐसा खाना जो जानवर भी न खाए।
मुझे रोज़ ताजमहल के ऊपर काम पर ले जाया जाता था । हमारा गुलामो का एक ग्रुप था और उसमे एक लीडर होता था । एक ग्रुप में 1000 लोग थे और इसी तरह दूसरे ग्रुप भी काम करता था । हम सभी ताजमहल का ऊपरी काम सम्भालते थे ।

(45 days)

आज एक आदमी ऊपर से गिर गया । पर मेरे लिए ये एक आम बात सी हो चली थी । रोज 100 से जादा लोग मरते थे कुछ भूख के कारण तो कुछ बिमारी की वजह से जादा तर तो यहा सिपाहियो के अत्याचार के कारण मारे जाते है । पर मै कुछ नही कर सकता हु क्योंकि मै खुद एक गुलाम था । रोज़ हजारो लोगों को जो मर जाते या बीमार होते उन्हें जिन्दा ही दफन दिया जाता था मुर्दो के साथ । जो भी काम करते करते मर जाते थे उन्हें ताजमहल की नीव में फेक दिया जाता था । एक दिन एक बच्चा पत्थरो के निचे आ गया पर उसमे जान बाकी थी फिर भी सेनिको ने उसे ताजमहल की नीव में फेक दिया । कई बार तो मरने वालो को दीवारो में ही चुनवा दिया जाता था ताकि ख़र्चा कुछ कम हो जाए ।

(Day 100)
आज 100 दिन हो चके है और मै यहाँ से निकलना चाहता हु । मरते बच्चे और औरतो की चीखे मै और नही सुन सकता था । मुझे कुछ तो करना था ।
पूरी रात मै यही सोचता रहा की जिस कुँए ने मुझे यहाँ भेजा है वही कुँआ मुझे फिर से मेरे वक्त में मुझे पहुँचा सकता है ।
यही सोच कर अगले दिन मैने सभी गुलामो से उस कुँए के बारे में पूछने लगा । मुझे काफी जानकारियां मिलने लगी और आखिर कार मुझे वहाँ जाने का रास्ता भी पता चल गया । पर वो जगह काफी दूर थी और सिपाहियो से नजर बचा कर वहाँ जाना नामुमकिन था । इसलिए मै यहाँ से भागने की तरकीब सोचने लगा ।

(Day 110)
इतनी मेहनत के बाद आखिर कार मुझे मौका मिल गया । इसे किस्मत कह ले या मौका पर आज एक गुलाम बच्चों की नई टोली आई और मेरा काम देखते हुए मुझे उन बच्चों का leader बना दिया गया अब मेरा काम उन बच्चों पर नजर रखना और पानी लाना था ।
(Day 120)
जब सिपाहियो को मुझ पर भरोशा हो गया तो उन्होंने मेरे ग्रुप पर नजर रखना छोड़ दिया यही मौका था जब में वापस जा सकता था । अगले दिन का मेरा प्लान पक्का था । मैने सैनिको से जादा ऊट माग लिए ताकि जादा पानी लाया जा सके और मै अपनी मंजिल की ओर निकल पड़ा । कई घण्टो की यात्रा के बाद आखिर कार वो कुँआ नजर आने लगा ।
जब मै उस कुँए के पास पहुँचा तो में हैरान रह गया कुँए में पानी था । अब मै कैसे उस दरवाजे तक पहुँचूँ यही सोचने लगा । तभी बच्चे कुँए से पानी निकालने लगे । और मेरे दिमाग में idea आ गया । मैने सभी से कहा चलो पानी निकाले ।
हम सभी कुँए से बेतहासा पानी निकालने लगे जब तक कुँए में पानी कम न हो गया ।

आखिर कार कुँए में पानी खाफी कम बच गया था की मै तैर कर अंदर जा सकु । मैने सभी बच्चों को ऊट पर बैठने के लिए कहा और सब से कहा की तुम आजाद हो जाओ यहां से भाग जाओ । सभी बच्चे खुश हो गए और ऊट पर बैठ कर सभी चले गए । उनके जाते ही मैने कुँए में छलांग लगा दी । और तैर कर निचे जाने लगा । आखिर कार वो दरवाजा मुझे नजर आया मैने उसे खोलने की कोशिस की पर वो नही खुला और फिर में हवा लेने ऊपर आ गया मैने एक और बार डुबकी लगाई और मैने अपनी पूरी तागत से दरवाजे को खीचा और दरवाजा खुल गया और मै उस दरवाजे के अंदर खीच गया । एक तेज रौशनी हुई और जब मेरी आँख खुली तो मै कुँए में ही था । मुझे लगा शायद में उस दरवाजे को खोल नही पाया और मै तैरते हुए निचे गया तो देखा की वहाँ दरवाजा था ही नही ।
मै जोर जोर से चिल्लाने लगा की कोई मेरी आवाज सुन ले । तभी किसी ने मेरी तरफ रस्सी फेकी और मैने उसे पकड़ लिया । काफी मेहनत के बाद मै ऊपर चढ़ कर आ पाया । सामने एक लड़की थी जिसने बुरखा पहन रखा था । मैने उससे पूछा की मै कहा हु । उसने कहा मै delhi में हूँ । और जब उसने मुझे तारीख बताई तो मै हँस पड़ा ।
मै 1857 मे पहुँच गया था ।
अगली बार पढ़िएगा । कैसे मै मंगल पांडे से मिला । to be continue.........

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