Tuesday, 31 May 2016

delhi मेट्रो और ख़ुफ़िया राज ।


दोस्तों मै रवि चौधरी काम से थका हार घर लौट रहा था करीब 10:40 हो रहे थे और मै मेट्रो मे बैठा लोगो के घरो में जलती लाईटो को देख रहा था जो की मेरी थकी आखो को शुकुन दे रहा था । मै जल्दी से जल्दी घर जाना चाहता था। ऊपर से भूख भी लगी थी और नींद भी आ रही थी । मुझे मेट्रो भी बदलनी थी । ताकि मै अपने घर के रुट वाली मेट्रो पर चढ़ सकु पर अभी काफ़ी वक्त था मेट्रो change करने में तो मै गाने सुनने लगा ।
आज मेट्रो में कुछ गिने चुने लोग ही थे । और लगभग मेट्रो खाली ही थी । अचानक मेरी आँखे भारी होने लगी और न जाने कब मुझे नींद आ गई और मै सो गया ।
किसी छोटे बच्चे की तरह जब मेरी आँख खुली तो मै चौक गया और तेजी से चारो ओर देखने लगा पर मुझे कुछ नजर नही आ रहा था । मेट्रो में काफी अँधेरा था और लाइटे भी नही जल रही थी । मैने फौरन अपनी पैंट में हाथ डाला और अपना मोबाइल फ़ोन बाहर निकाला और उसकी लाइट जला कर चारो ओर देखने लगा ।
आप लोगो को जान कर हैरानी होगी की उस वक्त मेट्रो में कोई नही था पूरा मेट्रो खाली था और तेजी से पटरियों पर दौड़ रहा था ।
जल्दी से मैने अपने फोन में टाइम देखा और देखते ही मेरी टाँगे लड़खड़ाने लगी । करीब 1 बजकर 13 मिनट हो रहे थे । मुझे कुछ समझ नही आ रहा था की मे क्या करुँ । मेट्रो अपनी तेजी से दौड़ती चली जा रही थी पर हैरान करने वाली बात तो ये थी की अभी तक मुझे खिड़कियों से कुछ नजर नही आ रहा था । ऐसा लग रहा था की मै underground में हु।
मै अब इन सब से बाहर निकलना चाहता था इसलिए मैने कुछ कड़े कदम उठाने की सोची । और मै जोर जोर से चिल्लाने लगा ताकि driver मेरी आवाज सुन ले पर सब बेकार इतने सोर में कुछ सुनाई नही दे रहा था । तभी मेरी नजर आपातकालीन बटन पर पड़ी और मै तेजी से उस की ओर बढ़ा । मैने हिम्मत बटोरी और जैसे ही में बटन दबाने वाला था अचानक ट्रेन रुक गई और थोड़ी ही देर में एक अजीब सी खामोशी छा गई।
मै दरवाजे के पास इस उमीद से खड़ा हो गया की दरवाजा खुल जाए और ऐसा ही हुआ । मैने फौरन छलांग लगा दी और मेट्रो से भार निकल आया । अपने फोन की लाइट से मैने चारो ओर देखा तो मैने खुद को किसी सुरंग में पाया । मै हैरान था की मेट्रो सुरंग के बीच में क्या कर रही है ।चारो और कोहरा था और खुद की परछाई भी नही देखि जा सकती थी ।
मै काफी डरा हुआ था और जल्द से जल्द यहां से बाहर निकलना चाहता था । तभी अचानक एक तेज रौशनी को मैने खुद की ओर आते देखा वो कुछ और नही एक दूसरी मेट्रो थी जो मेरी ओर ही आ रही थी ।मुझे लगा की मै अब नही बचूंगा तभी मैने तेजी से फैसला किया और जिस मेट्रो से मै उतरा था फिर उसी मेट्रो में मै तेजी से कूद कर चढ़ गया । तभी अचानक फिर से सारे दरवाजे बन्द हो गए और मेट्रो फिर से चल पड़ी ।
इस बार मुझे लगा की शायद अब हम किसी स्टेशन पर पहुचे । काफी देर से मेट्रो चल रही थी और मै अकेला बैठा सोच रहा था की कब मै इन सब से बाहर निकलूंगा । तभी मेट्रो slow हो गई । मै तेजी से दरवाजे की ओर भागा कोई स्टेशन नजर आ रहा था पर ये आम स्टेशनों से थोडा अलग नजर आ रहा था । गाडी रुक गई और सारे दरवाजे खुल गए । मैने धीरे से कदमो को उतारा और चारो ओर देखने लगा मुझे सामने एक exit डोर नजर आया । मै तेजी से दरवाजे की ओर हो लिया ।
पूरा स्टेशन किसी उजाड़ खाने सा लग रहा था । लगभग हर चीज पुरानी थी और टूटी हुई । मैने दरवाजे को खोला तो कुछ सीडिया नजर आई और मै निचे की ओर उतरने लगा । सब कुछ बहुत पुराना था । छत पर एक टुटा पंखा ,एक पुरानी टूटी हुई खिड़की और जलता बुझता बल्ब । इन सब का कॉम्बिनेशन मौहौल को भूतिया बना रहा था ।
पर मुझे जल्दी से जल्दी यहाँ से निकलना था तभी मुझे आखिर कार एक दरवाजा नजर आया और मैने तेजी से उसे खोला ।
एक सुनहरी चमक ने मुझे हिला दिया ।। सोना (Gold) पूरा कमरा सोने की ईटो से भरा बड़ा था । और तो और न जाने कितनी सोने की मुर्तिया वहाँ रखी पड़ी थी वो कमरा किसी मैदान जितना बड़ा था। और मेरी आँखे इतनी बुरी तरह चमक रही थी की मैने अपने पीछे से आते खतरे को भी नही भाप पाया और किसी ने मेरा गला पकड़ लिया और मेरे नाक पर कोई गन्दी सी चीज रख दी ।

मेरा सर दर्द से फटा जा रहा था और मेरी आखे भी लाल पड़ गई थी । मैने धीरे धीरे अपनी आँखे खोली और एक तेज रौशनी नजर आई । पहले तो सब धुन्दला था पर धीरे धीरे मुझे नजर आने लगा ।
मै नेहरू प्लेस की एक bench पर सो रहा था । सुबह हो चुकी थी और सर दर्द से फट रहा था । मैने पास के नलके से थोडा पानी पिया और bench पर बैठ गया ।
क्या वो सब मेरा भर्म था । अगर हा तो में नेहरू प्लेस कैसे आया । किसने मुझे यहाँ रख दिया । क्या वो सब सच था । क्या वाकई वो स्टेसन वहाँ था । और अगर था तो क्या वो सोना भी असली था
मेरे मन में कई सवाल थे पर कोई जबाब नही ।
क्या सच में delhi मेट्रो के निचे खजाना था ।

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